Wednesday, 24 February 2016

टिहरी गडवाल ,उत्तराखंड चारधाम , उत्तराखंड चारधाम यात्रा


प्रणाम 
आज ले चलता हूँ आप को में टिहरी गढ़वाल 
टिहरी और गढ़वाल दो अलग नामों को मिलाकर इस जिले का नाम रखा गया है। जहाँ टिहरी बना है शब्‍द ‘त्रिहरी’ से, जिसका अर्थ है एक ऐसा स्‍थान जो तीन प्रकार के पाप (जो जन्‍मते है मनसा, वचना, कर्मा से) धो देता है वहीं दूसरा शब्‍द बना है ‘गढ़’ से, जिसका मतलब होता है किला।
सन्‌ ८८८ से पूर्व सारा गढ़वाल क्षेत्र छोटे छोटे ‘गढ़ों’ में विभाजित था, जिनमें अलग-अलग राजा राज्‍य करते थे जिन्‍हें ‘राणा’, ‘राय’ या ‘ठाकुर’ के नाम से जाना जाता था। ऐसा कहाजाता है कि मालवा के राजकुमार कनकपाल एक बार बद्रीनाथ जी (जो वर्तमान चमोली जिले में है) के दर्शन को गये जहाँ वो पराक्रमी राजा भानु प्रताप से मिले। राजा भानु प्रताप उनसे काफी प्रभावित हुए और अपनी इकलौती बेटी का विवाह कनकपाल से करवा दिया साथ ही अपना राज्‍य भी उन्‍हें दे दिया। धीरे-धीरे कनकपाल और उनकी आने वाली पीढ़ियाँ एक-एक कर सारे गढ़ जीत कर अपना राज्‍य बड़ाती गयीं। इस प्रकार सन्‌ १८०३ तक सारा (९१८ वर्षों में) गढ़वाल क्षेत्र इनके अधिकार में आ गया। उन्‍ही वर्षों में गोरखाओं के असफल हमले (लंगूर गढ़ी को अधिकार में लेने का प्रयास) भी होते रहे, लेकिन सन्‌ १८०३ में आखिर देहरादून की एक लड़ाई में गोरखाओं की विजय हुई जिसमें राजा प्रद्वमुन शाह मारे गये। लेकिन उनके शाहजादे (सुदर्शन शाह) जो उस समय छोटे थे वफादारों के हाथों बचा लिये गये।
धीरे-धीरे गोरखाओं का प्रभुत्‍व बढ़ता गया और इन्‍होनें लगभग १२ वर्षों तक राज किया। इनका राज्‍य कांगड़ा तक फैला हुआ था, फिर गोरखाओं को महाराजा रणजीत सिंह ने कांगड़ा से निकाल बाहर किया। और इधर सुदर्शन शाह ने इस्‍ट इंडिया कम्‍पनी की मदद से गोरखाओं से अपना राज्‍य पुनः छीन लिया।
ईस्‍ट इण्डिया कंपनी ने फिर कुमाऊँ, देहरादून और पूर्व गढ़वाल को ब्रिटिश साम्राज्य में मिला दिया और पश्‍चिम गढ़वाल राजा सुदर्शन शाह को दे दिया जिसे तब टेहरी रियासत के नाम से जाना गया। राजा सुदर्शन शाह ने अपनी राजधानी टिहरी या टेहरी नगर को बनाया, बाद में उनके उत्तराधिकारी प्रताप शाह, कीर्ति शाह और नरेन्‍द्र शाह ने इस राज्‍य की राजधानी क्रमशः प्रताप नगर, कीर्ति नगर और नरेन्‍द्र नगर स्‍थापित की। इन तीनों ने १८१५ से सन्‌ १९४९ तक राज किया। तब भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान यहाँ के लोगों ने भी बहुत बढ़चढ़ कर भाग लिया। स्वतन्त्रता के बाद, लोगों के मन में भी राजाओं के शासन से मुक्‍त होने की इच्‍छा बलवती होने लगी। महाराजा के लिये भी अब राज करना कठिन होने लगा था।
और फिर अंत में ६० वें राजा मानवेन्‍द्र शाह ने भारत के साथ एक हो जाना स्वीकर कर लिया। इस प्रकार सन्‌ १९४९ में टिहरी राज्‍य को उत्तर प्रदेश में मिलाकर इसी नाम का एक जिला बना दिया गया। बाद में २४ फ़रवरी १९६० में उत्तर प्रदेश सरकार ने इसकी एक तहसील को अलग कर उत्तरकाशी नाम का एक ओर जिला बना दिया।

Tuesday, 23 February 2016

uttarakhand char dham yatra, uttarakhand char dham yatra packages, char dham yatra packages


Uttarakhand chardham, uttarakhand chardham yatra, uttarakhand cahrdham yatra packages, chardham yatra packages

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः।। (मनु स्मृति 3-56)
जिस कुल में स्त्रीयाँ पूजित होती हैं, उस कुल से देवता प्रसन्न होते हैं। जहाँ स्त्रीयों का अपमान होता है, वहाँ सभी ज्ञानदि कर्म निष्फल होते हैं।

Uttarakhand chardham, Chardham Uttarakhand, Uttarakhand Chardham Yatra



Uttarakhand chardham tour, Uttarakhand Chardham Yatra, Uttarakhand Chardham



उत्तराखंड हिमालय का आँचल है
हिमालय की सुन्दरता यहाँ से सुरु चारोँ तरफ हरी भरी हरियाली
इन छोट्टे छोटे गाँव की सुन्दरता
हिमालय की सोभा बढाती है बल्कि सुन्दरता का प्रत्तित का एक अंग है
{मेरी देव भूमि उत्तराँखंड भारत}
जय हो