नर और नारायण पर्वतों के मध्य स्थित बद्रीनाथ धाम स्थित है। स्कन्दपुराण के अनुसार सतयुग के आरंभ में स्वयं भगवान लोक कल्याण के लिए श्री विष्णु बद्रीनाथ के रूप में मूर्तिमान विराज हुए थे। 3133 मी0 की ऊंचाई पर स्थित स्थित बद्रीनाथ का मंदिर मानव की धार्मिक चेतना और भारत की आध्यात्मिक शांति का प्रतीक है। 9वीं सदी में आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा मूर्ति को नारदकुण्ड से निकालकर मंदिर में प्रतिष्ठापित किया गया। नर-नारायण पर्वतों के मध्य प्रवाहित विष्णुगंगा भगवान बदरी विशाल के चरणों को स्पर्श करती हुई विष्णुप्रयाग में संगम करने से पूर्व अलकनंदा कहलाती है। मंदिर के कपाट माह अप्रैल-मई में खुलते है तथा नवम्बर में बंद हो जाते हैं। बद्रीनाथ की पूजा रावल जो दक्षिणी देश अथवा चोली या मुकाणी जाति का होता है। रावल को विवाह का अधिकार न होने के साथ ही वेदों का ज्ञान रखने वाला होना चाहिए।
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