Thursday, 24 December 2015

Badrinath Yatra | Badrinath Yatra Packages | Badrinath Tour Packages


जैसा कि मैंने बताया था कि मैं उत्तराखंड का रहने वाला हूँ l जिसे देवभूमि भी कहते हैं... देवभूमि इसे ऐसे ही नहीं कहते हैं, यहाँ भगवान् विष्णु का प्रसिद्ध मंदिर “बद्रीनाथ” स्थित है और भगवान् शिव का प्रसिद्ध मंदिर “केदारनाथ” स्थित है... गंगा नदी का उद्गम स्थल “गंगोत्री” है, यमुना नदी का उद्गम स्थल “यमुनोत्री” भी यही स्थित है l जहाँ देश विदेश से लोग दर्शन के लिए आते हैं...
बद्रीनाथ धाम उत्तराखंड के चार धामों में से एक है.... जो की इस प्रकार हैं.... बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री l बद्रीनाथ उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित है l जिस की पुनर्स्थापना आदि गुरु शंकराचार्य जी ने किया था... बद्रीनाथ जी के कपाट साल में सिर्फ 6 महीने ही खुले रहते हैं... बाकी 6 महीने वह बर्फ गिरी रहती है जिस कारण यातायात संभव नहीं हो पता है.
बद्रीनाथ नर और नारायण नाम के दो पर्वतों के बीच में स्थित है... बद्रीनाथ पंच बद्री में से एक है... बाकि क्रमशः हैं – योग्धायन बद्री, भविष्य बद्री, वृद्ध बद्री और आदि बद्री l
यहाँ पर एक तप्त कुंड है जिस में भयंकर ठंडी में जब चारो और बर्फ जमी होती है फिर भी इस में साल भर गर्म पानी आता है... यहाँ देखने और भी बहुत सी अच्छी जगहे भी हैं... जैसे की व्यास गुफा, भीम पुल, गणेश गुफा l
बद्रीनाथ धाम से थोड़ी दूर सरसवती नहीं पर भीम पुल है... भीम पुल के बारे में कई लोकोक्क्तियाँ हैं कि महाभारत काल में जब पांडव स्वर्ग जा रहे थे तो रस्ते में सरस्वती नहीं मिल गई तो पांडवो में सरस्वती से प्रार्थना की कि हमे उस पार जाने के लिए रास्ता दें पर सरस्वती ने उनकी ना सुनी तो भीम ने गुस्से में आ कर दो विशाल चट्टानों को नहीं के ऊपर रख कर पुल बना दिया जो आज भी मौजूद है और भीम पुल के नाम से प्रसिद्ध है...
सरस्वती नदी बस यही दिखती है उस के बाद थोड़े आगे जा कर वो अलकनंदा नदी में मिल जाती है... पर कहा जाता है की सरस्वती और अलकनंदा नदी का संगम दिखाई नहीं देता है... इस बात पर भी एक कथा है की भीम में क्रोध में अपने गदा के प्रहार से सरस्वती को पाताल में भेज दिया था...
एक कथा और है की जब भगवान् गणेश जी महाभारत की कथा लिख रहे थे तो सरस्वती नदी के कारण बहुत शोर हो रहा था... गणेश जी ने सरस्वती जी को कहा की शोर न करे उन्हें कार्य में व्यवधान हो रहा है पर सरस्वती नहीं आई और न ही उनकी बात मानी... जिस से नाराज हो कर गणेश जी ने श्राप दिया की आज के बाद इस से आगे तुम किसी को नहीं दिखोगी..
बद्रीनाथ जोशीमठ से आगे है,,, यहाँ जाने का बेस्ट टाइम अप्रैल-मई का है,,, क्यों कि तब थोडा गरम मोसम भी होने लगता है... और बारिश भी नहीं होती तो रोड भी सही रहती है.. क्युकि फिर मई के बाद तो बारिश के मौसम शुरू हो जाता है..

Wednesday, 23 December 2015

Uttarakhand Chardham | Uttarakhand Chardham Yatra | Uttarakhand Chardham Yatra Packages

देवभूमि उत्तराखण्ड इतना सुन्दर, इतना मनोरम है कि देवता भी यहां निवास करते हैं । तीर्थयात्रा से मनुष्य के मन में ईश्वर के प्रति श्रध्दा, आस्था तो पैदा होती ही है, साथ ही उसके चरित्र का विकास भी होता है । भारत भूमि के अनेक तीर्थ ऐसे हैं जिन्हें देवताओं ने स्थापित किया है। कई तीर्थों में देवताओं ने स्वयं भक्तों को दर्शन दिया है । प्रतिवर्ष लाखों लोग तीर्थ यात्रा को घर से निकलते हैं और अपनी मनोकामना पूर्ण कर मनवांछित फल पाते हैं ।
ग्रीष्म ऋतु में उत्तराखण्ड के इस प्रदेश में शीत प्रदान जलवायु अत्यन्त सुखद होती है। हिमाच्छादित ऊंची पर्वत श्रेणियां सघन ऊंचे वृक्षों से ढंकी रम्य नदियां घाटियां, कलकलनाद करते झरने, पहाड़ी नद और नदियाँ, हिमनदों के नीचे बहता स्फटिक जल किसका ध्यान आकर्षित नहीं करता । जिस धरती पर हिमालय जैसा पर्वतराज, बद्रीनाथ , केदारनाथ जैसे तीर्थ, पतित पावनी गंगा यमुना , अलकनन्दा, भागीरथी आदि दर्जनों नदियों का उद्गम , पंच प्रयाग, पंच बद्री , पंच केदार, उत्तरकाशी, गुप्त काशी हो ऐसा विलक्षमण क्षेत्र उत्तराखण्ड का गढ़वाल मंडल सही अर्थों में तीर्थ यात्रियों, सैलानियों का स्वर्ग है ।

Monday, 21 December 2015

आदि बद्री

आदि बद्री रानीखेत मार्ग पर कर्णप्रयाग से 17 किलोमीटर दूर तथा चांदपुर गढ़ी से 3 किलोमीटर दूर है। इसका निकटवर्ती तीर्थ है कर्णप्रयाग। चांदपुर गढ़ी से 3 किलोमीटर आगे जाने पर आपके सम्मुख अचानक प्राचीन मंदिर का एक समूह आता है जो सड़क की दांयी ओर स्थित है। किंबदंती है कि इन मंदिरों का निर्माण स्वर्गारोहिणी पथ पर उत्तराखंड आये पांडवों द्वारा किया गया। यह भी कहा जाता है कि इसका निर्माण 8वीं सदी में शंकराचार्य द्वारा हुआ। भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षणानुसार के अनुसार इनका निर्माण 8वीं से 11वीं सदी के बीच कत्यूरी राजाओं द्वारा किया गया। कुछ वर्षों से इन मंदिरों की देखभाल भारतीय पुरातात्विक के सर्वेक्षणाधीन है।
मूलरूप से इस समूह में 16 मंदिर थे, जिनमें 14 अभी बचे हैं। प्रमुख मंदिर भगवान विष्णु का है जिसकी पहचान इसका बड़ा आकार तथा एक ऊंचे मंच पर निर्मित होना है। एक सुंदर एक मीटर ऊंचे काली शालीग्राम की प्रतिमा भगवान की है जो अपने चतुर्भुज रूप में खड़े हैं तथा गर्भगृह के अंदर स्थित हैं।
इसके सम्मुख एक छोटा मंदिर भगवान विष्णु की सवारी गरूड़ को समर्पित है। समूह के अन्य मंदिर अन्य देवी-देवताओं यथा सत्यनारयण, लक्ष्मी, अन्नपूर्णा, चकभान, कुबेर (मूर्ति विहीन), राम-लक्ष्मण-सीता, काली, भगवान शिव, गौरी, शंकर एवं हनुमान को समर्पित हैं। इन प्रस्तर मंदिरों पर गहन एवं विस्तृत नक्काशी है तथा प्रत्येक मंदिर पर नक्काशी का भाव उस मंदिर के लिये विशिष्ट तथा अन्य से अलग भी है।
यहां अब भी पूजा होती है तथा विष्णु मंदिर की देखभाल चक्रदत्त थपलियाल करते हैं जो पास ही थापली गांव के रहने वाले हैं तथा पांच-छ: पीढ़ियों से इस मंदिर के पुजारी रहे हैं।

मदमहेश्वर

मदमहेश्वर पंचकेदार का एक और महत्वपूर्ण मंदिर है। ऊखीमठ से १० कि.मी. पर है मनसूना। मनसूना तक सड़क है। यहाँ से पैदल चलना होगा। कुछ दूरी तक चलकर अच्छा पथ मिल जाता है। राँसी गाँव में राकेश्वरी देवी का प्राचीन मंदिर देखते हुए हम गोंढार गाँव आये। यह इस छोर का अंतिम गाँव है। एक कि.मी. पर है वनतोली। रात्रि-विश्राम यहीं करना ठीक रहेगा। यहाँ तक कोई परेशानी नहीं है। सुबह यहाँ से अपनी यात्रा शुरू करें। एकदम चढ़ाई चढ़ कर एक सघन वन से गुजरते पथ पर चलते चलें। कठिन मार्ग से ११ कि.मी. चलकर पहुँचेंगे एकदम अनूठे प्राकृतिक परिवेश में बने मदमहेश्वर के मंदिर के सामने। समुद्रतल से ३२८९ मीटर की ऊँचाई पर बना यह मंदिर अत्यंत आकर्षक है। मंदिर से कहीं अधिक आकर्षक है यहाँ का प्राकृतिक परिवेश। एकदम हरी-भरी घाटी।

Kalpeshwar tour


कल्पेश्वर मन्दिर
कल्पेश्वर मन्दिर उत्तराखण्ड के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। यह मन्दिर उर्गम घाटी में समुद्र तल से लगभग 2134 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। इस मन्दिर में 'जटा' या हिन्दू धर्म में मान्य त्रिदेवों में से एक भगवान शिव के उलझे हुए बालों की पूजा की जाती है। कल्पेश्वर मन्दिर 'पंचकेदार' तीर्थ यात्रा में पाँचवें स्थान पर आता है। वर्ष के किसी भी समय यहाँ का दौरा किया जा सकता है। इस छोटे-से पत्थर के मन्दिर में एक गुफ़ा के माध्यम से पहुँचा जा सकता है।
स्थिति
कल्पेश्वर मन्दिर काफ़ी ऊँचाई पर स्थित है। भगवान शिव को समर्पित यह स्थान पवित्र धाम माना जाता है। कल्पेश्वर उत्तराखण्ड के महत्वपूर्ण तीर्थ स्थलों मे से एक है। यह उत्तराखण्ड के असीम प्राकृतिक सौंदर्य को अपने मे समाए हिमालय की पर्वत शृंखलाओं के मध्य में स्थित है। कल्पेश्वर सनातन हिन्दू संस्कृति के शाश्वत संदेश के प्रतीक रूप मे स्थित है। एक कथा के अनुसार, एक लोकप्रिय ऋषि अरघ्या मन्दिर में कल्प वृक्ष के नीचे ध्यान करते थे। यह भी माना जाता है की उन्होंने अप्सरा उर्वशी को इस स्थान पर बनाया था। कल्पेश्वर मन्दिर के पुरोहित दक्षिण भारत के नंबूदिरी ब्राह्मण हैं। इनके बारे में कहा जाता है की ये आदिगुरु शंकराचार्य के शिष्य हैं।
कथा
कल्पेश्वर में भगवान शंकर का भव्य मन्दिर बना है। कल्पेश्वर के बारे में पौराणिक ग्रंथों में विस्तार पूर्वक उल्लेख किया गया है। इस पावन भूमि के संदर्भ में कुछ रोचक कथाएँ भी प्रचलित हैं, जो इसके महत्व को विस्तार पूर्वक दर्शाती हैं। माना जाता है कि यह वह स्थान है, जहाँ महाभारत के युद्ध के पश्चात विजयी पांडवों ने युद्ध में मारे गए अपने संबंधियों की हत्या करने की आत्मग्लानि से पीड़ित होकर इस क्षोभ एवं पाप से मुक्ति पाने हेतु वेदव्यास से प्रायश्चित करने के विधान को जानना चाहा। व्यास जी ने कहा की कुलघाती का कभी कल्याण नहीं होता है, परंतु इस पाप से मुक्ति चाहते हो तो केदार जाकर भगवान शिव की पूजा एवं दर्शन करो। व्यास जी से निर्देश और उपदेश ग्रहण कर पांडव भगवान शिव के दर्शन हेतु यात्रा पर निकल पड़े। पांडव सर्वप्रथम काशी पहुँचे। शिव के आशीर्वाद की कामना की, परंतु भगवान शिव इस कार्य हेतु इच्छुक न थे।
पांडवों को गोत्र हत्या का दोषी मानकर शिव पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे। पांडव निराश होकर व्यास द्वारा निर्देशित केदार की ओर मुड़ गये। पांडवों को आते देख भगवान शंकर गुप्तकाशी में अन्तर्धान हो गये। उसके बाद कुछ दूर जाकर महादेव ने दर्शन न देने की इच्छा से 'महिष' यानि भैसें का रूप धारण किया व अन्य पशुओं के साथ विचरण करने लगे। पांडवों को इसका ज्ञान आकाशवाणी के द्वारा प्राप्त हुआ। अत: भीम ने विशाल रूप धारण कर दो पहाडों पर पैर फैला दिये, जिसके निचे से अन्य पशु तो निकल गए, पर शिव रूपी महिष पैर के नीचे से जाने को तैयार नहीं हुए। भीम बलपूर्वक भैंसे पर झपट पड़े, लेकिन बैल दलदली भूमि में अंतर्ध्यान होने लगा। तब भीम ने बैल की पीठ को पकड़ लिया। भगवान शंकर की भैंसे की पीठ की आकृति पिंड रूप में केदारनाथ में पूजी जाती है। ऐसा कहा जाता है कि जब भगवान शिव भैंसे के रूप में पृथ्वी के गर्भ में अंतर्ध्यान हुए तो उनके धड़ का ऊपरी भाग काठमांडू में प्रकट हुआ, जहाँ पर 'पशुपतिनाथ' का मन्दिर है। शिव की भुजाएँ 'तुंगनाथ' में, नाभि 'मध्यमेश्वर' में, मुख 'रुद्रनाथ' में तथा जटा 'कल्पेश्वर' में प्रकट हुए। यह चार स्थल पंचकेदार के नाम से विख्यात हैं। इन चार स्थानों सहित श्री केदारनाथ को 'पंचकेदार' भी कहा जाता है।[1]
पुराण कथा
शिवपुराण के अनुसार ऋषि दुर्वासा ने इसी स्थान पर वरदान देने वाले कल्प वृक्ष के नीचे बैठकर तपस्या की थी, तब से यह 'कल्पेश्वर' कहलाने लगा। केदार खंड पुराण में भी ऐसा ही उल्लेख है कि इस स्थल में दुर्वासा ऋषि ने कल्प वृक्ष के नीचे बैठकर घोर तपस्या की थी, तभी से यह स्थान 'कल्पेश्वरनाथ' के नाम से प्रसिद्ध हो गया। इसके अतिरिक्त अन्य कथानुसार देवताओं ने असुरों के अत्याचारों से त्रस्त होकर कल्पस्थल में नारायणस्तुति की और भगवान शिव के दर्शन कर अभय का वरदान प्राप्त किया था।
कल्पगंगा

कल्पेश्वर कल्पगंगा घाटी में स्थित है। कल्पगंगा को प्राचीन काल में हिरण्यवती नाम से पुकारा जाता था। इसके दाहिने स्थान पर स्थित तट की भूमि 'दुरबसा' भूमि कही जाती है। इस जगह पर ध्यानबद्री का मन्दिर है। कल्पेश्वर चट्टान के पाद में एक प्राचीन गुहा है, जिसके भीतर गर्भ में स्वयंभू शिवलिंग विराजमान है। कल्पेश्वर चट्टान दिखने में जटा जैसी प्रतीत होती है। देवग्राम के केदार मन्दिर के स्थान पर पहले कल्प वृक्ष था। कहते हैं कि यहाँ पर देवताओं के राजा इंद्र ने दुर्वासा ऋषि के शाप से मुक्ति पाने हेतु शिव-आराधना कर कल्पतरु प्राप्त किया था।

Friday, 18 December 2015

Rudranath Tour - Rudranath Yatra - Rudranath Trekking

 रुद्रनाथ मंदिर 2286 मीटर कि ऊंचाई पर रुद्रनाथ में स्थित है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और हिन्दुओं में एक खास धार्मिक महत्व रखता है। मंदिर में भगवान शिव कि पूजा नीलकंठ महादेव के रूप में की जाती है। कहानी के अनुसार महाभारत के युद्ध के बाद पांडव हिमालय आये थे, पांडव भगवान् शिव से अपने पाप के लिए क्षमा चाहते थे क्यूँ कि वे महाभारत के युद्ध में कोरवों को मारने के दोषी थे, पर भगवान् शिव उनसे मिलना नहीं चाहते थे इसलिए उन्होंने अपने आप को नंदी बैल के रूप में बदल लिया और गडवाल क्षेत्र में कहीं छिप गए।इसके तुरंत बाद भगवान शिव का शरीर चार अलग अलग भागों में विभाजित हो गया जिन्हें पंच केदार के रूप में जाना जाता है। जहाँ भगवान शिव का सिर पाया गया वहां पर रुद्रनाथ मंदिर बना है। यात्री सागर गाँव और जोशीमठ द्वारा ट्रेकिंग मार्ग द्वारा भी मंदिर तक पहुँच सकते हैं। जोशीमठ से यह रास्ता 45 किमी लम्बा है। मंदिर हाथी पर्वत, नंदा देवी, नंदा घुंटी ,त्रिशूल आदि चोटियों का मंत्रमुग्ध करने वाला द्रश्य प्रदान करता है। सूर्य कुंड, चन्द्र कुंड, तार कुंड और मानकुंड आदि पवित्र कुंड मंदिर के पास ही स्थित हैं।

Dhari Devi Darshan - Dhari Devi tour

क्या आप जानते हैं ?
एक 20 मीटर ऊंची चट्टान के ऊपर स्थित , धारी देवी का मंदिर अलकनंदा नदी के किनारे पर स्थित है. श्रीनगर - बद्रीनाथ राजमार्ग पर श्रीनगर (पौड़ी गढ़वाल) से 19 किलोमीटर की दूरी की यात्रा पर कालिया सव्ध नामक स्थान तक फिर अलकनंदा नदी की दिशा में एक किलोमीटर नीचे यह मंदिर स्थित है .एक स्थानीय कहानी अनुसार, मंदिर एक बार बाढ़ में बह गया था, तैरते हुई मूर्ति एक चट्टान पे रुक गई , ग्रामीणों ने मूर्ति को पुकारता हुआ सुना. स्थान पर पहुँचने पर उनहोंने एक दिव्य आवाज सुनी जिसने उन्हें निर्देश दिए की जिस स्थान पे मूर्ती है वहीँ पे उसे स्थापित किया जाए. तब से माता के भयंकर रूप की यह मूर्ति यहाँ स्थापित है , जिन्हें धारी देवी के रूप में जाना जाता है , खुले आकश के निचे यहाँ हजारों श्रद्धालु माता के दर्शन हेतु आते हैं. बद्रीनाथ जाते हुए भक्त यहाँ माता के दर्शन करना नहीं भूलते. श्रीनगर में स्थित इस धारी देवी मंदिर में माता का केवल सर स्थापित है , बाकी शरीर रुद्रप्रयाग जिले के कालीमठ में माना जाता है
यह माना जाता है कि धारी देवी की मूर्ति को छत के नीचे नहीं रखा जाएगा. उसी कारण से, धारी देवी मंदिर में मूर्तियों खुले आसमान के नीचे स्थापित हैं. धारी देवी की मूर्तियों की तस्वीरें लेना सख्त वर्जित है.
मंदिर के पास का गांव देवी धारी के नाम पे है और धारी गांव के रूप में जाना जाता है. अलकनंदा नदी पर एक झूला पुल धारी गांव को धारी मंदिर से जोड़ता है.
ॐ जय माँ धारी.
कहानी पढ़ने के बाद एक इच्छा मांगे .. माँ धारी देवी आपकी इच्छा को पूरी करें .
शेयर कर के अन्य भक्तों को भी माँ धारी की कृपा से अवगत कराएँ 

Uttarakhand Chardham- Uttarakhand CHardham Yatra

Uttarakhand Chardham | Uttarakhand Chardham Yatra | Uttarakhand Chardham...

Kedarnath Yatra

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Uttarakhand Chardham | Uttarakhand Chardham Yatra | Uttarakhand Chardham Yatra Packages

                                              ॐ त्रियम्बकं यजामहे, सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं
                                             उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात्..

Kalimath Tour- Kalimath Darshan- Kalimath Yatra

कालीमठ, रुद्रप्रयाग जिले के प्रमुख पर्यटक स्थलों में से एक है।  इसे भारत के सिद्ध पीठों में एक माना जाता है।  कालीमठ में हिंदू देवी काली को समर्पित एक मंदिर है।  नवरात्रि के शुभ अवसर पर इस मंदिर में देश के विभिन्न भागों से हज़ारों की संख्या में भक्तगण आते हैं।  इस पर्यटन स्थल के निकट के उखीमठ और गुप्तकाशी भी दर्शनीय पर्यटन स्थल हैं। 

Tungnath Yatra | Tungnath Yatra Packages






तुंगनाथ उत्तराखण्ड के गढ़वाल के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित एक पर्वत है। तुंगनाथ पर्वत पर स्थित है तुंगनाथ मंदिर, जो ३,६८० मीटर की ऊँचाई पर बना हुआ है और पंच केदारों में सबसे ऊँचाई पर स्थित है। यह मंदिर १,००० वर्ष पुराना माना जाता है और यहाँ भगवान शिव की पंच केदारों में से एक के रूप में पूजा होती है। ऐसा माना जाता है की इस मंदिर का निर्माण पाण्डवों द्वारा भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए किया गया था, जो कुरुक्षेत्र में हुए नरसंहार के कारण पाण्डवों से रुष्ट थे। तुंगनाथ की चोटी तीन धाराओं का स्रोत है, जिनसे अक्षकामिनी नदी बनती है। मंदिर चोपता से ३ किलोमीटर दूर स्थित बारह से चौदह हजार फुट की ऊंचाई पर बसा ये क्षेत्र गढ़वाल हिमालय के सबसे सुंदर स्थानों में से एक है। जनवरी-फरवरी के महीनों में आमतौर पर बर्फ की चादर ओढ़े इस स्थान की सुंदरता जुलाई-अगस्त के महीनों में देखते ही बनती है। इन महीनों में यहां मीलों तक फैले मखमली घास के मैदान और उनमें खिले फूलों की सुंदरता देखने योग्य होती है। इसीलिए अनुभवी पर्यटक इसकी तुलना स्विट्जरलैंड से करने में भी नहीं हिचकते। सबसे विशेष बात ये है कि पूरे गढ़वाल क्षेत्र में ये अकेला क्षेत्र है जहां बस द्वारा बुग्यालों की दुनिया में सीधे प्रवेश किया जा सकता है। यानि यह असाधारण क्षेत्र श्रद्धालुओं और पर्यटकों की साधारण पहुंच में है।यह पूरा पंचकेदार का क्षेत्र कहलाता है। ऋषिकेश से श्रीनगर गढ़वाल होते हुए अलकनंदा के किनारे-किनारे यात्रा बढ़ती जाती है। रुद्रप्रयाग पहुंचने पर यदि ऊखीमठ का रास्ता लेना है तो अलकनंदा को छोडकर मंदाकिनी घाटी में प्रवेश करना होता है। यहां से मार्ग संकरा है। इसलिए चालक को गाड़ी चलाते हुए बहुत सावधानी बरतनी होती है। मार्ग अत्यंत लुभावना और सुंदर है। आगे बढ़ते हुए अगस्त्य मुनि नामक एक छोटा सा कस्बा है जहां से हिमालय की नंदाखाट चोटी के दर्शन होने लगते हैं।

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Thursday, 17 December 2015

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Wednesday, 16 December 2015

Yamunotri Yatra | Yamunotri Yatra Packages | Yamunotri Tour Packages

चार-धाम यात्रा का प्रथम पड़ाव यमुनोत्री जो  उत्तरकाशी से 131 किमी0 उतर में स्थित है। यमुनोत्री पहुँचने के लिए श्रद्धालुओं को हनुमान चट्टी से 13 किमी0 की दूरी पैदल ही तय करनी पड़ती है। शीतकाल में अत्यधिक ठंड पड़ने से यहाँ बर्फ गिरानी शुरू हो जाती है, जिसके कारण यमुनोत्री धाम के कपाट बंद कर दिये जाते हैं और ग्रीष्मकाल में प्रतिवर्ष बशाख शुक्ल की तृतीया को खोले जाते हैं। सप्तऋषि कुण्ड से करीब 6 किमी0  की दूरी पर खरसाली गाँव है, जहां सोमेश्वर देवालय है। गंगोत्री मंदिर में खरसाली गाँव के पंडित पुजा-अर्जना का कार्य करते हैं। मंदिर के पास गरम कुण्ड है जहां पर श्रद्धालु चाँवल व आलू को कपड़े में बांधकर गरम कुण्ड में कुछ समय के लिए छोड़ देते हैं, कुछ समय बाद यह पक जाता है। मंदिर के एक ओर सूर्य कुण्ड के नजदीक शीला है, जिसको दिव्य शीला के नाम से जाना जाता है। सर्वप्रथम श्रद्धालु इस शीला की पुजा अर्चना करते हैं।

Gangotri Yatra | Gangotri Yatra Packages | Gangotri Tour Packages

उत्तरकाशी जनपद में स्थित गंगोत्री धाम समुद्र तल से 9,980 (3,140 मी0) फीट की ऊंचाई पर स्थित है। गंगोत्री धाम में भागीरथी का मंदिर है, जिसमें गंगा, लक्ष्मी, पार्वती व अन्नपूर्णा की मूर्तियाँ स्थापित है। गंगोत्री में गंगा को भागीरथी नदी के नाम से जाना जाता है। हिन्दू धार्मिक ग्रन्थों में राजा भागीरथ की कठोर तपस्या से गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए भगवान शिव को विवश किया था। इसी स्थान पर गंगा पृथ्वी पर उतरी थी। गंगा नदी यहाँ गौमुख से निकलती है। इस मंदिर का निर्माण 18वीं शताब्दी में गोरखा सेनापति अमर सिंह थापा ने करवाया था। ऋषिकेश से करीब 255 किमी0 की दूरी पर इस मंदिर के कपाट अप्रैल माह में अक्षय तृतीया को खोला जाता है। माँ गंगा की डोली मुखवा गाँव के मार्कन्डेय मंदिर से शुरू होकर गंगोत्री धाम से लिए प्रस्थान होती है।

Kedarnath Yatra | Kedarnath Yatra Packages | Kedarnath Tour Packages

रुद्रप्रयाग जनपद में स्थित केदारनाथ 3581 मी0 की ऊंचाई पर मन्दाकिनी नदी के तट पर स्थित है। केदारनाथ 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। पर्वत श्रेणियों की विशालखण्डों के बीच निर्मित है। पौराणिक गाथाओं के अनुसार भगवान विष्णु ने बद्रीनाथ में अपना पहला कदम रखा। इस स्थान पर पहले भगवान शिव निवास करते थे, लेकिन भगवान विष्णु के लिए उन्होने इस इस स्थान को त्यागकर केदारनाथ में निवास करने लग गए। केदारनाथ मंदिर की ऊंचाई लगभग 66 फीट है। मंदिर के बाहर चबूतरे पर नंदी की एक विशाल मूर्ति है। एकांतप्रिय भगवान शंकर की तपस्थली केदारनाथ के विषय में पुराणों में विषद वर्णन उपलब्ध है। केदारनाथ हिमालय के सभी तीर्थ स्थलों में श्रेष्ठ है। गढ़वाल के श्रेष्ठ प्राचीन व विशाल एवं मंदिरों में प्रसिद्ध है। केदारनाथ में भगवान शिव की पीठ (पृष्ठ भाग) का विग्रह है।

Badrinath Yatra | Badrinath Yatra Packages | Badrinath Tour Packages

नर और नारायण पर्वतों के मध्य स्थित बद्रीनाथ धाम स्थित है। स्कन्दपुराण के अनुसार सतयुग के आरंभ में स्वयं भगवान लोक कल्याण के लिए श्री विष्णु बद्रीनाथ के रूप में मूर्तिमान विराज हुए थे। 3133 मी0 की ऊंचाई पर स्थित स्थित बद्रीनाथ का मंदिर मानव की धार्मिक चेतना और भारत की आध्यात्मिक शांति का प्रतीक है। 9वीं सदी में आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा मूर्ति को नारदकुण्ड से निकालकर मंदिर में प्रतिष्ठापित किया गया। नर-नारायण पर्वतों के मध्य प्रवाहित विष्णुगंगा भगवान बदरी विशाल के चरणों को स्पर्श करती हुई विष्णुप्रयाग में संगम करने से पूर्व अलकनंदा कहलाती है। मंदिर के कपाट माह अप्रैल-मई में खुलते है तथा नवम्बर में बंद हो जाते हैं। बद्रीनाथ की पूजा रावल जो दक्षिणी देश अथवा चोली या मुकाणी जाति का होता है। रावल को विवाह का अधिकार न होने के साथ ही वेदों का ज्ञान रखने वाला होना चाहिए।

Monday, 14 December 2015

Panch Prayag Yatra | Panch Prayag Yatra Packages | Panch Prayag Tour Packages

Panch Prayag Yatra

Panch Prayag Tour
Uttarakhand Chardham offers you Panch Prayag Yatra. The Ganga is divine river of India Uttarakhand. It originates from Garhwal Himalayas of Uttarakhand and the spaces Devprayag, Karnaprayag, Rudraprayag, Nandprayag and Vishnuprayag are located on confluences of Alaknanda with Rivers Bhagirathi, Mandakini, Pinder, Nandakini and Dholi Ganga in that order. There are plentiful sacred yatras that you can agree to in Uttarakhand. Panch Prayag yatra is one such trip that provides the peace and hold up you may be looking for for your soul, mind and body.

Devprayag
DevPrayag is regarded as the most total showcase of legends, heritage and custom. If on one hand Lord Rama and his father King Dashratha did penance here. On the other, some of the oldest stone inscription in the region can be establish here. The temple of Raghunath, houses a tall picture of Lord Rama complete of black stonework. The Ram Temple is recognized as Raghunath temple. Srinagar, the previous capital of Tehri Garhwal is at a space of 33 km. It is the primary Prayag (flowing together) on way to Badrinath.

Rudraprayag
Lord Shiva performed his well-known Tandav Nritya and played his Rudra-Veena at this time. With his Raga-Raganees he bound Lord Vishnu to come into view in face of him and with music of his veena, he twisted Lord Vishnu to water. The Kartik Swami Temple is devoted Lord Shiva’s son Kartikeya. The place of worship is 38 Km gone from Rudraprayag at Rudraprayag-Pokhri route. The place of worship can be reach after a 3 Km trek from Kanak Chauri town.

Karanprayag
At Karanprayag Alaknanda River is adjoining by Pindar River. According to the legend, Karan from the marathon Mahabharata following reparation achieved Kavacha (armour) and Kundala (ear rings) from his minister, Sun god, therefore, the name of Prayag is qualified after his first name. It is the sub-divisional head-quarter of area Chamoli.

Nandprayag
21 km from Karnaprayag, on the main way to Badrinath, where the Alaknanda and Mandakani rivers get together, is a purpose which has turn out to be a major tourist stumbling point. Named Nandaprayag, it honors the pious and honest King Nanda, who had perform a 'Yagya' and given aid to the Brahmins to win the love and blessing of God. Lord Vishnu made sure his personification in the appearance Lord Krishna was intuitive to Devki and Vasudev but bring up by Yashodha and Nanda.

Vishnuprayag
12 kilometres from Joshimath, is Vishnuprayag, located on the confluence of Alaknanda and Dhauli Ganga rivers. In legends, this is the place where the wonderful Narad had meditated and received the blessings of aristocrat Vishnu. An octagonal wrought temple built way back in 1889 was recognized near the convergence. Ahalyabhai, maharani of Indore recognized this temple and installed a Shiva Linga in it. The holy place now features a Vishnu picture as well.

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Panch Kedar Yatra

Panch Kedar Tour
Here Uttarakhand Chardham offers you Panch Kedar yatra. The Panch Kedar lies in the valleys flanked by the rivers Bhagirathi and Alaknanda. The phrase Kedar itself earnings a customary rock formation or a glacial moraine. According to legend, Himalayas Kedarnath, the head seat of the Panch Kedar, come into being throughout the stage when the five Pandava brothers were asked to seek Shiva's blessings, removal them off sin of fratricide, or murder their cousin brothers in the frightening fight of Kurukshetra.
Kedarnath:
Kedarnath Temple is the 1st Panch Kedar Temple and it is a holiest pilgrimage for the Hindus. The holy place, believed to be very ancient, has been continually renovated over the centuries. Kedarnath yatra. The lingam at Kedarnath, unlike its customary form, is pyramidal and is regard as one of the 12 Jyotirlingas. Located at an altitude of 3,581 mts.
Tungnath:
Tungnath Temple is the 2nd Panch Kedar Temple and it is located at a height of 3,886 meters, Tungnath is the uppermost temple in India. Fable has it that the arm of Shiva appear here. Tungnath Yatra. Ravana, of the Ramayana, is said to have perform reparation at this temple to propitiate Shiva.
Rudranath:
The features of Lord Shiva is worshipped at Rudranath shrine in a usual rock temple as Neelkantha Mahadeva. Rudranath Yatra. Lord Shiva is worshipped here as Neelkantha. The temple is located amid thick woods at a height 2286 mtr.
Madhyamaheshwar:
Shiva is worshipped at Madmaheshwar in the shape of navel - shaped lingum. Madhyamaheshwar yatra.Situated at base of Chaukhamba peak, at a height of 3,289 mts, the classic temple structural design belongs to the north - Indian style.
Kalpeshwar:
The hardier traveler may like to trek concerning 35 km to Kalpeshwar, where the locks and head, of Lord Shiva be worshipped as Jatadhar. The workroom is proceeding by a natural cave passage. Bounded by thick forests and terraced field in the Urgam valley, the shrine is reached next a 10 km. long trek.

Day 01 - Delhi - Haridwar.

Day 2 - Haridwar – Rudraprayag/Guptkashi / Gaurikund.

Day 3 - Guptkashi / Gaurikund - Kedarnath 16 kms trek.

Day 4 - Kedarnath - Gaurikund 16 kms trek.

Day 5 - Guptkashi / Gaurikund - Kalimath - Ransi 14 kms trek.

Day 6 - Ransi - Madmaheshwar 17 kms trek.

Day 7 - Madmaheshwar Rest.

Day 8 - Madmaheshwar - Ransi 17 kms trek.

Day 9 - Ransi - Kalimath 14 kms trek - Chopta over night stay.

Day 10 - Chopta - Tungnath - Chopta 4 kms trek one way.

Day 11 - Chopta - Sagar vai Taxi - further 10 kms trek.

Day 12 - 12 kms trek to Rudranath.

Day 13 - Rudranath - Sagar 22 kms trek - Gopeshwar over night stay.

Day 14 - Gopeshwar - Pipalkoti Rest.

Day 15 - Pipalkoti - helong - Kalpeshwar 12 kms trek.

Day 16 - Kalpeshwar - Helong 12 kms trek - Pipalkoti.

Day 17 - Pipalkoti - Haridwar

Day 18 - Haridwar - Delhi.

Panch Badri Yatra | Panch Badri Yatra Packages | Panch Badri Tour Packages

Panch Badri Yatra

Panch Badri Tour
Uttarakhand chardham present you here Panch Badri Yatra. Panch Badri is five domicile of Lord Vishnu located at different site of Garhwal Himalaya. Where lord Vishnu worship under five dissimilar form and names. It is supposed that lord Vishno mediated at all these spaces in this Alaknanada river gorge. We offer you here Panch Badri yatra fully package with very cheap rate and good services.

6 Nights/ 7 Days

Destination: Destination: Delhi- Haridwar- Rishikesh- Rudraprayag- Joshimath- Yogdhyan Badri- Bridh Badri Joshimath- Adibadri- Ranikhet – Delhi.

Day 1 : Delhi To Haridwar – Rishikesh
In the morning departure from Delhi to Rishikesh. Upon entrance at Rishikesh, check in at the hotel. Overnight at Rishikesh.

Day 2: Rishikesh To Joshimath
In the morning after breakfast make sure out from the hotel, and make to Joshimath. Overnight at Joshimath hotel.

Day 3 : Joshimath To Badrinath – Mana – Badrivishal –Badrinath
In the morning after mealtime, Drive to Badrinath. And visit holy place of Badri Vishal. And visit Mana Caves. Overnight at Badrinath hotel.

Day 4 : Badrinath – Pandukeshwar- Yogdhyan Badri – Joshimath
In the sunrise after breakfast check out from the hotel, and drive to Pandukeshwar, Visit to Yogdhyan Badri . Later make to Joshimath. Overnight at Joshimath hotel.

Day 5: Joshimath – Tapovan Bhabishya Badri –Joshimath - Bridh Badri - Joshimath
In the morning following breakfast, drive to Tapovan, from here we determination get a trek to Bhabishya badri. Later back to Joshimath hotel.

Day 6: Joshimath – Karan Prayag- Adibadri –Ranikhet
In the morning after breakfast check out as of the hotel, and drive towards Ranikhet via Karnaprayag. In Ranikhet we spirit visit Adibadri. Overnight at hotel Ranikhet.

Day 7: Ranikhet – Delhi
In the morning after breakfast, check out as of the hotel and force towards Delhi, upon entrance at Delhi, move to the airport to vicious circle the trip for your onward purpose.

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Badrinath Yatra

Badrinath Temple is one of the holiest Hindu temples in India. It is situated in Uttarakhand state along the river Alaknanda, the holy place is fundamentally a Lord Vishnu temple. Badrinath also known as Badri Vishal and Badrinarayan. The major appeal of Badrinath Dham is the one gauge tall bronze of Vishnu in the shape of Lord Badrinarayan which is cast in black "Shaligram" granite. Shri Badrinath temple is flank by two mount ranges recognized as Nar and Narayan with the very tall Neelkanth peak offering a fine background.

3 Nights/ 4 Days


Day 1: Haridwar To Joshimath

We welcome you at Haridwar Railway Station, Hotel in Haridwar, Jollygrant Airport or anywhere else. And from here we start our Badrinath Yatra. In the way we Saw the Rishikesh, Devprayag, Rudraprayag, Karnprayag and reached Joshimath in the evening. Check in the hotel in Joshimath and overnight stay in the hotel.

Day 2: Joshimath To Badrinath

In the morning we take our breakfast and start our Badrinath Yatra and reached Badrinath in afternoon. Visit to the holy Temple Sri Badrinath Ji and expend time visiting Mana village the last village previous to the Tibetan border, Byas Gufa, Bheem Pul, Saraswati River. After this check in the hotel in Badrinath and Night stay in the Badrinath Hotel.

Day 3: Badrinath To Rudraprayag

In the morning we take our breakfast and start our third day of Badrinath Yatra from Badrinath to Rudraprayag. In the evening we reached Rudraprayag and visit holy temple in Rudraprayag and check in the hotel in Rudraprayag and overnight stay in the hotel in Rudraprayag.

Day 4: Rudraprayag To Haridwar

In the morning we take our breakfast and start our last day yatra from Rudraprayag to Haridwar. On the way we reached Rishikesh and visit Ram Jhula, Laxman Jhula, Triveni Ghat, Swarg Ashram here. And after this we drop you at Haridwar Railway Station, Airport or anywhere else.

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Welcome to Uttarakhand chardham yatra. Happy to serve you a religious tour of Uttarakhand with best services best accommodation. Uttarakhand is also recognized as Dev Bhoomi (Land of Gods), as it is the land of huge pilgrimages, sacred temples and spaces, which attract millions of pilgrims and religious seekers to get enlighten. The pilgrimage of Char Dhams located in Garhwal region is careful the most holy places in India: Kedarnath, Badrinath, Gangotri and Yamunotri. These four ancient temples also mark the religious source of four holy rivers as well: River Ganga or Ganges (Gangotri), River Yamuna (Yamunotri), River River Alaknanda (Badrinath) and Mandakini (Kedarnath). Uttarakhand chardham yatra is a spiritual tour.